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Thursday 23 June 2016

आपको 'सुपरमैन' बनने में मदद करेगा इंसानों की 'तीसरी आंख' का ये रहस्य!

तीसरा नेत्र, जिसने शिव को देवों का देव बना दिया। सिर्फ शिव ही क्यों? हिंदू घर्म, बौद्ध घर्म यहांतक कि चीन के ताओ धर्म की पौराणिक तस्वीरों में भी। तीसरी आंख का जिक्र हुआ है। तो क्या, ये तीसरी आंख सिर्फ किसी की कल्पना है या फिर इंसानों से जुड़ा कोई ऐसा रहस्य, जिसे आप और हम आजतक नहीं समझ पाए। 
मानव विज्ञान के मुताबिक आंखों के ठीक ऊपर और माथे के बीचों बीच एक अद्भुत केंद्र हिस्से में एक ग्रंथि मौजूद है, जिसे पीनियल ग्रंथि कहा जाता है। प्राचीन काल में इंसानोंं के सिर के पिछले हिस्से में वाकई एक तीसरी आंख थी, जिसके वैज्ञानिक सबूत विज्ञान की कई रिसर्च में सामने आ चुके हैं। दरअसल विज्ञान, जिसे पीनियल ग्लैंड कहता है, उसे ही आध्यात्म में आज्ञा चक्र कहा जाता है। वेदों और पुराणों में आपने कुंडलिनी शक्ति का जिक्र सुना होगा। ये आज्ञा चक्र भी कुंडलिनी के सात चंक्रों में से एक है।इंसानों के त्रिनेत्र के रहस्य को सुलझाने के लिए IBN7 की टीम ने एक बड़ी रिसर्च शुरु की। इस तलाश में सिंहस्थ कुंभ का रुख किया। यहां हम कई साधुओं से मिले, हमें कई जानकारियां भी मिलीं, लेकिन हमें जरूरत थी किसी ऐसी शख्सियत की, जिसने अपनी जिद से उन शक्तियों को जागृत किया। उत्तम स्वामी जी महाराज वो शख्सियत थे, जो आज पहली बार इंसानों के उस गूढ़ रहस्य को दुनिया के सामने रखेंगे, जो सिखाएंगे, कि कुंडलिनी शक्ति को जागृत करने की तकनीक क्या है?
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वैज्ञानिक रिसर्च मानती है कि इंसान अपने दिमाग का करीब 5 से 6 फीसदी हिस्सा ही इस्तेमाल करता है यानी दिमाग का करीब 95 फीसदी हिस्सा ऐसा है, जिसे इंसान आजतक काबू में नहीं कर पाया। जरा सोचिए, अगर आपके पास कोई ऐसी शक्ति हो, जिससे आप दिमाग का 90 फीसदी इस्तेमाल कर पाएं, तो क्या होगा? शायद हम वो नहीं रह जाएंगे, जो अभी हैं विज्ञान की भाषा में समझें, तो इसी ताकत को कुंडलिनी शक्ति कहा गया है।
आध्यात्म के नजरिए से देखें तो शरीर के उस शक्ति केंद्र यानी कुंडलिनी का रिश्ता रीढ़ की हड्डी से जुड़ा है। उत्तम महाराज के मुताबिक कुंडलिनी शक्ति यानी रीढ की हड्डी, इसका जो आकार है वो नाग की तरह है। आध्यात्म में इंसानी शरीर को सात चक्रों में बांटा गया है और इन्हीं चंक्रों में से एक आज्ञा चक्र यानी त्रिनेत्र चक्र है। आध्यात्म मानता है कि आज्ञा चक्र तभी जागृत होगा, जब मूलचक्र को जगाया जाएगा। अब इसे विज्ञान की नजर से देखें तो त्रिनेत्र यानी पीनियल ग्लैंड ही वो जगह है, जहां से इंसान को विचार आते हैं। यही वो जगह है, जो नींद के वक्त सपनों की रूपरेखा बनाती है।
हिप्नोटिज्म यानी सम्मोहन के बारे में तो आप भी जानते होंगे। अक्सर सम्मोहित करने वाले लोग किसी पैंडुलम के सहारे इंसान को अपने वश में करते हैं। अगर आपने गौर किया हो, तो सम्मोहन में वो पैंडुलम इंसान की उसी पीनियल ग्लैंड के पास रखा जाता है ताकि इंसान की ऊर्जा उस ग्रंथि पर इकट्ठा हो जाए और फिर इंसान का दिमाग पूरी तरह काबू में आ जाए।
हमारी रोज मर्रा की जिंदगी में ऐसी बहुत सी बातें हैं, जिनका सीधा रिश्ता उस त्रिनेत्र से है। कभी सोचा है, कि महिलाएं बिंदी क्यों लगाती हैं, बिंदी लगाने का रिवाज शुरू क्यों हुआ? अगर गौर करें, तो बिंदी उसी जगह पर लगाई जाती है, जहां पीनियल ग्लैंड यानी त्रिनेत्र मौजूद है। ऐसा माना जाता है, कि महिलाओं का दिमाग चंचल होता है और उसे काबू में करने के लिए लाल बिंदी का इस्तेमाल किया जाता है। सिर्फ यही नहीं, पुरुषों में चंदन का तिलक लगाने की परंपरा भी इसी से जुड़ी है ताकि चंदन की ठंडक से इंसान का त्रिनेत्र काबू में रहे। यानी हमारे रीति-रिवाजों में, पुरानी परंपराओं में भी त्रिनेत्र की शक्तियों को माना गया। ये बात अलग है कि हम में से बहुत से लोगों को इसकी कोई जानकारी नहीं, लेकिन सवाल अब भी वही है, कि आखिर तीसरी आंख जागृत कैसे होगी? कुडलिनी शक्ति सक्रिय कैसे होंगी और अब वो रहस्य आपने सामने आने वाला है।
कुंडलिनी शक्ति से जुड़े बहुत से मिथक हैं, लेकिन जानकारों की मानें तो कुंडलिनी शक्ति को जगाने के लिए किसी सीक्रेट साधना की जरूरत नहीं होती। उत्तम महाराज ने बताया है कि ये जरूरी नहीं कि आपने स्नान किया हो, कोई भी कुंडलिनी शक्ति को जाग्रत कर सकता है, किस मंत्र का प्रयोग किया जा रहा है। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है।
आखिर कुंडलिनी को जागृत कैसे किया जाए?
बस थोड़ा सा योग, थोड़ी सी साधना और विज्ञान की छोटी सी तकनीक उस दिव्य दृष्टि को जगा सकती है। योग, जिसकी ताकत को आप भी पहचानते होंगे, लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसी योग की एक छोटी सी तकनीक में ही इंसान की सबसे बड़ी शक्ति छिपी है। बस उसी छोटी सी तकनीक के इस्तेमाल से आप कहीं भी, कभी भी कुंडलिनी शक्ति को जगा सकते हैं। उत्तम महाराज के मुताबिक ये बहुत सहज है। कुंडलिनी शक्ति आपने देखा होगा कि छोटे बच्चों का पेट एक इंच ऊपर नीचे होता है, लेकिन जब हम बड़े होते हैं तो हृदय से सांस लेने लगते हैं। सर्वश्रेष्ठ सांस अगर कहीं है, तो वो नाभि है।
विज्ञान के मुताबिक अगर शरीर के मशीन है, तो सांसे उस मशीन की चाबी यानी शरीर की हर प्रक्रिया सांसों से ही जुड़ी है। अक्सर योग के वक्त हम अपनी सांसों को फेफड़ों तक लाकर ही छोड़ देते हैं, लेकिन योग विज्ञान के मुताबिक अगर उन सांसों को शरीर के निचले हिस्से यानी मूलाधार चक्र तक महसूस किया जाए तो इंसान कुंडलिनी शक्तियों को जगाने की तरफ पहला कदम रख सकता है।
उत्तम महाराज ने बताया कि सारी बॉडी का सिस्टम डिपेंड नाभि पर है। श्वांस लंबी होनी चाहिए। नाभि की नीचे तक श्वास आनी चाहिए। रोजाना का श्वास लेते समय, नाभि तक का श्वास आना चाहिए। थोड़ा योग अभ्यास कर लें, अनुलोम विलोम कर लें। मतलब योग के वक्त ध्यान को केंद्रित करना होगा। ये महसूस करना होगा कि हमारी सांसे नाभि के केंद्र तक प्रहार कर रही हैं।
हमारे बताया गया कि अगर कोई इंसान लगातार इस योग का अभ्यास करे। दिन में कहीं भी, कभी भी, इस छोटी सी तकनीक का इस्तेमाल करें तो कुछ वक्त बाद ही इंसान को अपनी शख्सियत में बदलाव महसूस होने लगेगा। धीरे-धीरे आपको महसूस होगा कि आपकी सारी ऊर्जा माथे के इस केंद्र पर आ रही हैं। इस योग साधना से ही आज्ञा चक्र जागृत होगा और आप महसूस करेंगे, कि आपके दिमाग में सिर्फ वही विचार हैं, जो आप चाहते हैं।
दिमाग में सिर्फ वही तस्वीरें उभरेंगी, जो आप देखना चाहते हैं। आपको दूर की आवाज भी साफ सुनाई देगी। आप किसी इंसान को एक नजर देखेंगे और वो आपका दीवाना हो जाएगा। आप पैसा चाहते हैं, मिल जाएगा। आप बीमारी से मुक्ति चाहते हैं, मिल जाएगी। आप तरक्की चाहते हैं, वो भी आ जाएगी। सिर्फ इसलिए क्योंकि अब आप वही करेंगे, जो आप करना चाहते हैं। आपका दिमाग सिर्फ वही बोलेगा, जो आप सुनना चाहते हैं। यही है वो योग, जिसे साधु-संतों को करिश्माई शक्तियां दीं। यही है वो रहस्य, जो दुनिया के हर महामानव की कामयाबी का राज बना।

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